Poetry
पतझड़
May 4, 2022
मैं फिर पतझड़ कुछ भूरी, कुछ सूखी… गिरती इस ख्वाब से कि मिट्टी में मिल जाऊं निष्पक्ष, निरंग, निरंकार एक नया जीवन पाऊं… न फेंक मुझे ओ माली बेकार, निष्प्राण समझकर आज धरती की सेज पर जो सोऊं कल आऊं बहार बनकर… - Monika Khanna Gulati First posted on 2 October 2020https://www.facebook.com/groups/ncrwastematters/posts/3137246926402457/
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