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पतझड़

मैं फिर पतझड़
कुछ भूरी, कुछ सूखी…
गिरती इस ख्वाब से
कि मिट्टी में मिल जाऊं
निष्पक्ष, निरंग, निरंकार
एक नया जीवन पाऊं…
न ‌फेंक मुझे ओ माली
बेकार, निष्प्राण समझकर
आज धरती की सेज पर जो सोऊं
कल आऊं बहार बनकर…

– Monika Khanna Gulati

First posted on 2 October 2020
https://www.facebook.com/groups/ncrwastematters/posts/3137246926402457/